दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे 14वें दिल्ली पुस्तक मेले का उद्दघाटन 30 अगस्त को भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के द्वारा किया गया । इस बार यहाँ लगभग 299 प्रकाशकों ने हिस्सा लिया है । इसमें भारत सहित 7 देशों के प्रकाशक शामिल हैं । पाकिस्तान, चीन, अमेरिका और ईरान के पब्लिशर्स यहाँ अपनी किताबों के साथ आए हैं।


बच्चों और महिलाओं को विशेष स्थान

7 सितम्बर तक चलने वाले इस पुस्तक मेले के बारे में दिल्ली पुस्तक मेले के डायरेक्टर, शक्ति मलिक ने बताया, "इस बार यहाँ बच्चों की पुस्तकों से संबंधित प्रकाशकों और महिला लेखिकाओं को विशेष स्थान दिया गया है । इस पुस्तक मेले में 18 महिला लेखिकाओं की पुस्तकों को शामिल किया गया है । इनमें स्व। रजनी पनिका, विभा देवसरे, डॉ. कुसुम अंसल और महाश्वेतादेवी आदि की पुस्तकें शामिल है" । उन्होंने आगे कहा, "बच्चों की किताबें, साइन्स, इस्लाम, गणित और प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित पुस्तकें, मैगज़ीन, मैप्स, कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर इत्यादि को डिस्प्ले में रखा गया हैं" ।

हॉल न0 10 में स्टर्लिंग पब्लिशर्स बच्चों में किताबों के प्रति लगाव पैदा करने के लिए यहाँ कई कॉम्प्टीशन भी करवा रहा है । इसकी आयोजक सुनीता कपूर ने कहा, "यह कॉम्प्टीशन दिन में 3 से 5 के बीच होता है । इसमें शामिल सभी बच्चों के लिए प्राइज़ रखे गए हैं । हमारा मक़सद बच्चों की क्रिएटिविटी को बढ़ावा देना है । बच्चें यहाँ केवल किताबें खरीदने ही न आए बल्कि इनज्वॉय भी करें"।

तकनीकी का बोलबाला

दिल्ली पुस्तक मेले में इस बार टेक्नॉल्जी का काफी प्रभाव देखने को मिल रहा है । बच्चों की किताबें, टेबल, साइन्स के फॉर्मूले सब कुछ यहाँ एनिमेटेड फॉर्म में उपलब्ध हैं । इसकी खरीददारी के लिए बच्चे काफी संख्या में यहाँ आ रहे हैं । लोगों को अपने पसंद की बुक स्टॉल ढूँढ़ने में परेशानी न हो इसके लिए यहाँ 'कियोस्क' नाम की कम्प्यूर मशीन भी लगाई गई है। इसमें प्रकाशक कंपनी का नाम डालने पर आप उसकी स्थिति के बारे में जान सकते हैं । यहां पर टेबल की डीवीडी खरीदने आए सैकेण्ड क्लास में पढ़ने वाले सोमिल डाबर का कहना है कि इससे इन्हें टेबल आसानी से याद हो जाता है ।

दोस्ती बहल करने का ज़रिया किताबें

पाकिस्तान 1988 से लगातार दिल्ली पुस्तक मेले में शामिल हो रहा है । पाकिस्तान के 'नेशनल बुक फांउडेशन' के साथ आए शौकत अली का कहना है, "हमारे स्टॉल पर लोग काफी संख्या में आ रहे हैं । इसके लिए मैं हिन्दुस्तान के लोगों का शुक्रिया अद़ा करना चाहूँगा । हम यहाँ उर्दू और अंग्रेजी की लगभग 2000 किताबों के साथ आए हैं । इतिहास पर 'हिस्ट्री ऑफ राजपूत' नाम की किताब यहाँ काफी बिक रही है । यहां के लोग किताब पढ़ने के काफी शौकीन हैं । किताबें दो देशों के बाच दोस्ती बहाल करने में काफी मददगार साबित हो सकती हैं" । इन्होंने दो देशों के बीच दोस्ती बहाल करने में मीडिया की भी काफी प्रशंसा की ।

इन्टरनेट बनाम किताबें


लेकिन पिछली बार के मुकाबले इस बार यहाँ भीड़ कम देखने को मिल रही है । दिल्ली बुक फेयर के डायरेक्टर, शक्ति मलिक ने इसके बारे में कहा, "यह सच है कि इस बार लोग कम आ रहे हैं । इसके लिए 'इंडियन ट्रेड प्रमोशन ऑर्गनाइजेशन', (आईटीपीओ) जिम्मेदार है। क्योंकि इस बार इन्होंने इसके एडवरटीजमेंट पर काफी कम ध्यान दिया है" । बिहार से यहाँ किताबों की खरीददारी करने आए दीपक श्रीवास्तव का कहना है, "इंटरनेट और टी.वी के चलन से लोगों का रूझान किताबों की तरफ कम हो रहा है । अब ज्य़ादातर किताबें इंटरनेट पर भी उपलब्ध होती हैं और लोग वहीं से काफी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं । हार्ड कॉपी खरीदने की ज़हमत वे नहीं उठाना चाहते हैं । लोगों के पास किताबें पढ़ने के लिए समय भी नहीं है" । लेकिन दिल्ली के सुयश बत्रा के अनुसार इंटरनेट ने लोगों को किताबों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में काफी मदद की है । यह एक तरह से लोगों को किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित ही करता है । किताबों की जगह कोई नहीं ले सकता है।

अगर आप अपनी मनपसंद की किताब के लिए कई बुक शॉप्स के चक्कर लगा चुके हैं और निराश हैं, तो यहाँ एक बार ज़रूर आइए । हो सकता है कि आप यहाँ निराश न हो । और हाँ अपने साथ बच्चों को लाना मत भूलिएगा । क्योंकि उनके लिए भी यहाँ है बहुत कुछ ।

लेख : रमाशंकर पाण्डेय एंव जयश्री
चित्र : जयश्री