अगर आप बड़े-बड़े मॉल और शोरूम से खरीददारी करके बोर हो चुके हैं और खुद को और अपने घर के ड्राइंग रूम को देना चाहते हैं एक नया लुक तो, जाना मत भूलिए, दिल्ली के कनॉट प्लेस के राजीव गाँधी हैंडीक्राफ्ट भवन में।भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के सहयोग से 18 अगस्त से उत्तर प्रदेश के ग्रामीण शिल्पकारों के द्वारा आयोजित प्रदर्शनी इन दिनों लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। लखनऊ का चिकन,बनारसी सिल्क साड़ी,गोरखपुर के टेराकोटा के आइटम,फिरोजाबाद के काँच के बने सामान,ड्रेस मैटीरियल इत्यादि,यहाँ के मुख्य आकर्षण हैं।

भदोही की कालीन,दरी और बिछौने कई रेन्ज में यहाँ उपलब्ध हैं।इनकी कीमत 250 रूपये से लेकर 6500 रूपये तक है।इनकी कसीदाकारी में काफी महीन धागों का इस्तेमाल किया गया है।भदोही की इस परंपरागत शिल्प को कई सालों से सहेजते आ रहे विमलेश पटेल इसके बारे में कहते हैं,एक कालीन को बनाने में लगभग ड़ेढ़ से दो महीने लग जाते हैं।और ये कई सालों तक बिना किसी शिकायत के चलती हैं

गोरखपुर से टेराकोटा की बनी मूर्तियों,खिलौनों और शो पीस के साथ आए रामआसरे प्रजापति के यहाँ ये काम कई पीढ़ियों से चला आ रहा है।इनके नानाजी इस शिल्पकारी के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार भी पा चुके हैं। इन्होंने बताया कि, टेराकोटा का काम लगभग 5000 साल पुराना है।सिन्धुघाटी सभ्यता में भी मूर्तियां और खिलौने बनाने में टेरकोटा पद्वति का इस्तेमाल होता था दिल्ली के कमला नगर के सुनील भसीन इसके पुराने खरीददार हैं।इनके बारे में ये बताते हैं कि,ये चाहे जितनी पुरानी हो जाएं इनकी चमक हमेशा बरकरार रहती है।इनकी कीमत 20 रूपये से लेकर 300 रूपये तक हैं।

बनारस की साड़ियाँ औ लखनवी चिकन के कुर्ते और पाएजामे के खरीददार केवल दिल्ली वाले ही नहीं बल्कि विदेशी भी हैं।यूएसए से भारत आए रॉबर्ट ने लखनऊ के चिकन के बने कपड़ों के बारे में बताया कि,इनकी क्वालिटी काफी अच्छी है और पहनने में ये काफी आरामदायक होते हैं।लखनऊ के चिकन कई क्वीलिटी में यहाँ उपलब्ध है।लोग काफी संख्या में यहाँ खरीददारी करने आ रहे हैं।दिल्ली के मालवीय नगर की डॉ. संतोष अब तक यहाँ से 20000 रूपये की खरीददारी कर चुकी हैं।

फिरोज़ाबाद की बनी फैशनेबल चूड़ियां, कांच के बर्तन और खिलौने, चित्रकूट और सीतापुर की दस्तकारी भी लोगों को काफी पसंद आ रही है।उत्तर प्रदेश के ग्रामीण शिल्पकारों का यह विशेष डिस्प्ले 31 अगस्त तक रहेगा।

लेख : रमा शंकर पाण्डेय

चित्र : जयश्री